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हिन्दू पंचांग के अनुसार नव संवत्सर (नव वर्ष ) के प्रथम दिवस की ब्रह्म मुहूर्त बेला से ही हम आदि शक्ति की उपासना प्रारम्भ करते हैं( इस देश में एक जगद्गुरु की उपाधि से विभूषित व्यक्ति ,जगदम्बा की पूजा को ही निरर्थक बताते हैं और अपने तर्क की पुष्टि हेतु अनेक धार्मिक पुस्तकों से उद्धरण भी प्रस्तुत करते हैं ,ऐसे लोगों से बस इतना ही कहना है ,अपनी माँ को कभी मत भूलना ) .नौ दिन तक दुर्गा पूजा( प्रथम -शैलपुत्री ,द्वितीय -ब्रह्म चारिणी ,तृतीय – चन्द्र घंटा,चतुर्थ-कूष्माण्डा ,पंचम -स्कंदमाता ,षष्ठम -कात्यायनी ,सप्तम-कालरात्रि ,अष्टम-महा गौरी ,नवम-सिद्धिदात्री की उपासना) संपन्न होने के बाद नौवें दिन मध्य दिवस की बेला में(अभिजीत मुहूर्त में ) हम राम जन्मोत्सव मनाते हैं .
मैंने अभी तक के अपने जीवन में बहुत से शब्द पढ़े , सुने और कहे ,परन्तु “राम” से आसान शब्द कोई नहीं पाया( न पढ़ने में ,न सुनने में और न ही कहने में ) . इस शब्द में कुछ तो अलौकिक है .भलें ही हम उसे नर,देव ,देवों का देव या महादेव का भी इष्ट समझें या कहें .पर इस शब्द में मुझे बहुत अपनापन लगता है.
विगत कुछ वर्षों में मैंने देखा कि जिसने भी इस नाम के अस्तित्व को चुनौती देने की कोशिश की,उनका खुद का ही अस्तित्व संकट में आ गया .
अँधेरी के एक गुरूद्वारे के सबसे ऊपर मैंने लिखा देखा-“जो चाहे सुख को सदा शरण राम की गेह “,कबीर ने भी राम शब्द का अनुभव किया ,चाहे भले ही वह दशरथ पुत्र राम न हो .
हमारे धर्म के अनुसार अभी तक तीन राम हुए –
१) सबसे पहले सप्तऋषियों में एक स्थान पाने वाले महर्षि जमदग्नि ने अपने पुत्र का नाम राम रखा (आगे चलकर वही परसुराम नाम से विख्यात हुए ).
२) दूसरे सप्तऋषियों में एक वशिष्ठ जी ने अपने प्रिय शिष्य “चक्रवर्ती राजा दशरथ ” के बड़े पुत्र का नाम राम रखा.
३) तीसरे ऋषि गर्गाचार्य जी ने वसुदेव पुत्र ( कृष्ण के अग्रज ) का नाम राम रखा .
यह तीन प्रमुख राम है .तब से न जाने कितनों ने अपने पुत्र ,पौत्रों के नाम या नाम के आगे -पीछे राम लगाया, जैसे-बाबुराम,रामबाबू ;बालकराम ,रामबालक;रामआसरे -रामभरोसे;लज्जाराम -रामगोपाल,राजाराम – नेकराम आदि -आदि .
नासिक में तो एक ही जगह पर(बीच में मात्र एक गली ) दो मंदिर हैं -१)कालेराम ,२)गोरेराम.
हमारे दर्शन के अनुसार शब्द ब्रह्म है .यदि हम राम को एक शब्द भी माने तो वो भी ब्रह्म है .
हमारे आचार्यों ,कथाकारों ने कहा -जब तक राम की मर्यादा हमारे अंदर नहीं आती ,तब तक कृष्ण की रास लीला हम कदापि नहीं समझ सकते.
इस देश के मंदिरों में प्रत्येक आरती के बाद तीन बार ” हरे राम ,हरे राम ……कृष्ण कृष्ण हरे ,हरे ” का उद्घोष किया जाता है .
राजनीती में तो “राम” ,एक व्यक्तित्व नहीं वरन बहुत बड़ा मुद्दा है .राज नेता भले ही राम के आदर्शों पर न चल सकें ,पर राम मंदिर की दुहाई अवश्य देंगे .
मेरी तो बस एक ही मनो कामना है -“साँसों की माला पे सुमिरूँ मैं राम नाम”……………….
समस्त विश्व,चर -अचर को राम नवमी( आज नवमी भौमबार(मंगलवार ) ,मधुमास शुक्ल पक्ष ) की हार्दिक बधाई …………………………………………………………
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