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नैतिकता – केवल शब्द या जीवित हैं इसके मायने ; कितने नैतिक हैं हमलोग

SUBODHA
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हमारी कक्षा ५ के किसी विषय में एक प्रश्न था- माँ को बच्चे की प्रथम पाठशाला कहा जाता है ,क्यूँ ?
मैं दृढ़तापूर्वक यह भी कह सकता हूँ कि वो अंतिम पाठशाला भी है .माँ से प्रदत्त संस्कार व माँ की स्मृतियाँ मानवीय मष्तिष्क में हमेशा अंकित रहते हैं .हमारे देश में एक विषय है -गर्भ संस्कार.इस विषय पर मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि- केवल माँ ही इस विषय को पढ़ाने की पूर्ण योगयता रखती है .शायद नैतिकता का भी जन्म गर्भ संस्कार की प्रथम दिवस की शिक्षा से ही होता है .यदि ऐसा न होता तो हिरण्यकश्यपु का बेटा-भक्त प्रह्लाद न होता,रावण का भाई -भक्त विभीषण न होता, हमारा समाज तुलसी ,सूर ,कबीर ,बिहारी ,जायसी ,मीरा आदि-आदि को कभी नहीं पाता.
यह नैतिकता का ही प्रभाव है कि जब-विदेशी आक्रमणकारी इस देश की धन -सम्पदा को लूट रहे थे ,तब इस देश का एक फ़क्क्ड़ और त्यागी पूत -जिसे विदेशी धरती पर “साइक्लोनिक मोंक ” कहा गया,भारत माता का नाम रोशन कर रहा था .
भारत वर्ष की नैतिकता -गंगा के जल में है, तो संत रविदास के कठौते में भी है .चाणक्य की चोटी में है ,तो एकलव्य के अंगूठे में भी है .राजा दसरथ के महल में है ,तो शबरी की कुटिया में भी है ,राम के धनुष -बाण में है ,तो भरत पूजित प्रभु की पावंरी में भी है.
पर आज के इस युग में – मनुष्य “भद्रं कर्णेभिः श्रुण्याम देवाः “,”असतो मा सदगमय” का उद्घोष न सुनकर, जब ” चिकनी चमेली …..”,और “शीला की जवानी…….” जैसे गीतों से अपने कर्ण रंध्रों और ह्रदय को आप्लावित करेगा ,तो शायद हमें हर सुबह उठकर इस देश के समाचार पत्रों में -चार साल की बच्चियों का बलात्कार ,चौदह साल के बेटे के द्वारा माँ का बलात्कार जैसी ख़बरें ही पढ़नी पड़ेगी .
ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट या पुलिस बल की नहीं ,वरन नैतिकता की आवश्यकता है .
नैतिकता रुपी वृक्ष का अंकुर ह्रदय में फूटता है ,और वाणी से अंकुरित होकर समाज के ऊपर अपनी क्षत्र-छाया फैलाता है .
इस वृक्ष की विशालता,हरीतिमा या सूखापन हमारे विचारों पर ही निर्भर करता है .इसलिए
वर्त्तमान समय की मांग है -हम क्या खा रहे हैं,क्या पी रहे हैं ,क्या सुन रहे हैं,क्या देख रहे हैं और हमारे आसपास कैसा वातावरण हैं .एक माँसाहारी और शराबी व्यक्ति से मंत्रोच्चार की आशा रखना व्यर्थ हैं ,पर सादगी से जीवन जीने वाला व्यक्ति भले ही मंत्रोच्चार न कर सके ,लेकिन गलत शब्द बोलने से पूर्व सौ बार सोचेगा.यदि क्रोध के वशीभूत होकर कुछ गलत कह भी दिया ,तो क्षमा याचना की भी सामर्थ्य रखेगा .
आज के समय में जब एक बच्चे से लेकर राजनेताओं का भी नैतिक पतन हो रहा हैं ,तो मौन को मुखरित होना चाहिए,वशिष्ठ की शिष्ट वाणी का उद्घोष होना चाहिए.महर्षियों और राजर्षियों के वंशजों को नया शाश्त्र ,नया गीत लिखना चाहिए ………………………………..

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