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मैं आज ही भारत मित्र मंच नाम के एक वेब पोर्टल का ऑनलाइन सदस्य बना.मासिक प्रतियोगिता के कॉलम में मैंने एक शीर्षक देखा -“कलम की आवाज “: अपने ऐतिहासिक स्वरुप को ढूंढ़ता कलम ,कारण क्या ? लिखने वालों की अधिकता या पढ़ने वालों की कमी .
मुझे टॉपिक इंटरेस्टिंग लगा.
पूर्ण आदर और समीक्षा के साथ मैं अपना पक्ष रखना चाहता हूँ –
न ही इस देश में लिखने वालों की अधिकता है ,और न ही पढ़ने वालों की कमी.यदि कमी है तो केवल अच्छा लिखने और अच्छा पढ़ने वालों की .अच्छे और बुरे की पहचान ,स्वविवेक और आसपास के वातावरण से जिसमे किसी का पालन -पोषण हुआ हो,वर्त्तमान की परिस्थिति एवं और भी बहुत अन्य विन्दुओं पर भी निर्भर करती है. इस देश में बहुत से ऐसे भी मनुष्य हुए ,हैं और होते रहेंगे जिन्होंने न कभी कोई धार्मिक या साहित्यिक पुस्तक पढ़ी और न ही कोई लेख लिखा ,[परन्तु उनका जीवन ,एक आदर्श जीवन बना .उन्होंने अपनी जीवन सरिता से प्यासी जन मानस की चेतना को तृप्ति दी. न ही उन लोगों ने कभी असत्य का सहारा लिया और न ही कभी अनैतिकता से अर्थोपार्जन किया .आज इस आर्थिक और मैकेनिक युग में हमारी भूख इतनी बढ़ गयी ,कि हम अपने पूर्वजों के बताये गए आदर्शों को भूल गए और पैसा -पैसा चिल्लाने लगे .जब पैसा मिल गया तो ऐशो -आराम फरमाने लगे .हमारी आवश्कता टेलिविशन, एयर कंडीशनर ,न्यू गैजेट्स ,अच्छे कपडे ,नयी गाड़ी इत्यादि हो गए .हम और आगे बढे तो हमें शराब और शबाब की भी जरूरत महसूस होने लगी.लोक सेवा का स्थान लोभ और लालच ने ले लिया .समाज का एक वर्ग धनाड्य हो गया ,और दूसरा मज़दूर .एक क्वालिफाइड कहलाया और दूसरा गंवार .एक पढ़ा लिखा ,तो दूसरा अनपढ़ .समय की मांग है कि हम हक़ीक़त में जीना सीखें .पर्यावरण का संरक्षण करें .प्रकृति की गोद में आराम करना सीखें .गाओं व शहर का अंतर कम हो .तो शायद इस देश में बलात्कार की घटनाओं में कमी होगी .हमारा मानसिक और सामाजिक विकास अधिक होगा.जब चेतना स्वतः अच्छाई की ओर उन्मुख होगी तो कलम पुनर्जीवित होगी .हमारे पूर्वजों ने नदी के तट पर या उपवन में बैठ कर जो लिखा उसे हम ए. सी. कमरों में बैठकर समझ भी नहीं सकते , तो वैसा लिखने का तो कभी साहस ही नहीं होगा .सायद ये कलम भी हमें प्रकृति की गोद में आने का आमंत्रण दे रही है …………………………………….
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