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स्मृति के पन्नों से ………………………………….पार्ट -1

SUBODHA
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सिद्धि विनायक ……………….जो कि सभी शुभ कार्य से पूर्व याद किये जाते हैं ,मैं भी पूर्ण श्रद्धा के साथ ,अपने ह्रदय और मन से उन्हें स्मरण करता हुआ अपना फर्स्ट ब्लॉग लिख रहा हूँ . जैसा कि मैं नया लेखक हूँ,पहले मैं अपने आप का पाठको को परिचय देना चाहता हूँ .इन स्पिरिचुअल वर्ल्ड -मैं आत्मा हूँ-न में मृत्यु शंका ,न में जातिभेदो .चिदानंद रूपो शिवोहम,शिवोहम. वर्तमान कर्म के अनुसार -मैं जूनियर इंजीनियर हूँ .पारिवारिक मातृ पृष्ठभूमि के आधार पर -मैं, एक बड़े किसान(जमींदार) का नाती-(मेरे नाना -जो एक्स पुलिसमैन ,बहुत निर्भीक -निडर ,स्पस्ट वक्ता, बहुत परिश्रमी, बहुत क्रोधी परन्तु बहुत उदार भी ,पूर्णतः आत्मनिर्भर ,सत्य का साथ देने वाले ,शिक्षाप्रेमी,जरूरत मंदों कि सहायता करने वाले थे)-हूँ .पारिवारिक पितृ पृष्ठभूमि के आधार पर -मैं, एक छोटे किसान, लेकिन एडूकाशनिस्ट, का नाती-(मेरे बाबा-सत्यम वद,धर्मं चर ;सादा जीवन ,उच्च विचार; आचार हीनः न पुनन्ति वेदः ;अंधकार को क्यूँ धिक्कारे ,अच्छा है एक दीप जला रे ,जैसी सूक्तियों के आधार पर जीवन जीने वाले हैं ), हूँ .मैं इन दोनों का मिला जुला स्वरुप और स्वभाव वाला .मैंने अपनी किशोरावस्था में कुछ कवितायेँ भी लिखी ,पर समय के साथ मुझे ऐसा लगा कि कविताओं से पेट नहीं भरने वाला .हर एक आम आदमी कवी नहीं बन सकता .मैंने अपने मन का कवित्व शक्ति वाला चैप्टर बंद किया और आत्मनिर्भरता कि ओर चलने वाले क़दमों को गति प्रदान की.समय के साथ अनुभव बढ़ता गया ,जैसे कुम्हार और उसके परिवार के के निरंतर प्रयास और अथक परिश्रम से कच्ची मिटटी एक दिन सुंदर कलश में परिणिति हो जाती है ,वैसे ही ये जीवन जिसे मैं अपना कहूँ -एक दिन आत्मनिर्भर बन गया .अब एक ही कामना है कि ये जीवन कलश नवदुर्गा के लिए समर्पित हो जाये ,इसका उपयोग नव चेतना के उद्वोधन के लिए हो ,इस जीवन कलश से ब्रह्मनाद निकले और उसकी गूँज विश्व के हर कोने में सुनायी दे ,ताकि सुसुप्त आत्माओं का पुनरुतथान हो,नव सृजन हो ,नव निर्माण हो इसीलिए इस नवसंवत्सर में प्रवेश करने से पूर्व पुनः लेखनी थामने का साहस कर रहा हूँ .मुझे आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि मेरे मानसरोवर में खिलने वाला प्रत्येक पुष्प साहित्य प्रेमियों ,मनीषियों ,चिन्तकों और प्रेरणा कि चाह वाले मानस मंदिरों में शोभा बढ़ाएगा एवं सुगंध बिखेरेगा ……………………………………………………….

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